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ढुढती आखें

वो जिदंगी जिसे हम चाहते हैं एक भविष्य की कल्पनाएं
     
       उसके तन पर साड़ी नहीं COAT – TROUSERS हो
हाथों में चुडियां नहीं, एक मैं भारतीय सविंधान व दुसरे मैं कलम हो
पैरों में पायल नहीं #BOOT हो
गलें मैं मंगलसूत्र नहीं #TIE हो
माथें पर #बिन्दी नहीं ज्ञान का प्रकाश हो
नजरों में #खोफ नहीं हिम्मत हो

       -निठल्ले कि डायरी

By Vishnu Bairwa

3 replies on “ढुढती आखें”

साड़ी भी ही चूड़ी भी ही मंगल सूत्र भी हो और सरस्वती ज्ञान की देवी का वास भी हो।फिर वस्त्र कुछ भी पहने खौफ़ नहीं confidence होगा।

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